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TITLE : वामपंथ/ तुर्क, मुगल और फिरंगी हुकूमरानों के दमन के खिलाफ आदिवासी महिलाओं की संघर्ष कथा

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Published Date : 2024-07-31 09:55:07
Last Updated On :
News Category : आंदोलन
News Location ADDRESS : सोशल मीडिया से प्राप्त हुई हैं   
CITY : दिल्ली ,
STATE : दिल्ली , 
COUNTRY : भारत


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TITLE : वामपंथ/ तुर्क, मुगल और फिरंगी हुकूमरानों के दमन के खिलाफ आदिवासी महिलाओं की संघर्ष कथा

DESCRIPTION :


आदिवासी परंपराओं में एक फूलो-झानो मात्र नहीं हैं, उनके जैसी कई पुरखिन औरतें और वर्तमान समय में भी उनका निर्वाह करने वाली औरतें हैं। संघर्ष उनके जीवन का हिस्सा है।

क्या आप जानते हैं कि देश का सबसे बड़ा महिला संगठन ‘क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन’ है, जिसके सदस्यों की संख्या कुछ साल पहले तक नब्बे हजार थी और यह देश के पिछड़े माने जाने
वाले क्षेत्र दंडकारण्य में है। अन्याय के खिलाफ जागरूकता को देखते हुए यह कहना उचित होगा कि तथाकथित मुख्यधारा को आदिवासियों की धारा पर चलकर अन्याय का प्रतिकार करना, प्रकृति
की रक्षा करना सीखना चाहिए।

यह केवल आज की बात नहीं है। भारतीय इतिहास आदिवासियों के विद्रोहों से भरा हुआ है। उन्होंने प्रकृति को अपना पुरखा माना और कभी भी किसी की गुलामी स्वीकार नहीं की। 1857 के ग़दर से
पहले आदिवासी अंग्रेजी राज के जंगल में घुसपैठ और महाजनों-सामंतों के खिलाफ लड़ते रहे हैं। इनमें ‘हूल’ और ‘उलगुलान’, ‘भूमकाल’ जैसे विद्रोह तो इतिहास में रेखांकित भी किये गए,
लेकिन ऐसे सैकड़ों विद्रोह देश भर में हुए, जिनका जिक्र तक नहीं है।

इन सभी विद्रोहों में महिला और पुरुषों दोनों ने बराबर की भागीदारी की है। यहां एक फूलो-झानो मात्र नहीं हैं, उनके जैसी कई पुरखिन औरतें और वर्तमान समय में भी उनका निर्वाह करने
वाली औरतें हैं। संघर्ष उनके जीवन का हिस्सा है। बेहद खूबसूरत अंदाज में सजने वाले डोंगरिया कोंध आदिवासी महिलाओं का तो आभूषण ही एक छोटा-सा धारदार हंसिया है, जिसमें झूमर लगाकर
वे अपने बालों में फंसाए रखती हैं और वक्त आने पर उसका सटीक इस्तेमाल भी करती हैं। जंगली जानवरों से जान बचाने के लिए भी, जंगलों में घुसपैठ करने वालों पर भी।


जल-जंगल-जमीन-पहाड़-मैदान बचाने की लड़ाई में महिलाएं आज भी उसी तरह से लड़ रही हैं, जैसे वे इतिहास में लड़ती रही हैं। आदिवासी आंदोलनों का ही दस्तावेजीकरण काफी कम किया गया है, उसमें
औरतों के आंदोलन में भागीदारी का रिकार्ड तो और भी कम शब्दों में दर्ज किया गया है। लेकिन इन कम शब्दों में भी उनकी बहादुरी के किस्सों की खुश्बू आ ही जाती है।

आइये कुछ ऐतिहासिक आदिवासी आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका की चर्चा करते हैं।

चुआड़ विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों का पहला विद्रोह माना जाता है, जो कि 1767 से 1772 और फिर 1795 से 1816 के बीच चला। इसका विस्तार बंगाल प्रेसीडेंसी के मेदिनीपुर, बांकुड़ा और
बिहार तक था। इस विद्रोह में शामिल आदिवासियों, जिसमें भूमिज जनजाति के लोग ज्यादा थे, को ब्रिटिशों द्वारा उत्पाती या लुटेरा के संबंध में चुहाड़ कहकर बुलाया और अपमानित किया
गया। यह विद्रोह बढ़ते भू-राजस्व और जल-जंगल-जमीन पर अंग्रेजों के स्थापित होते आधिपत्य के खिलाफ था। आदिवासियों के निवास स्थान में घुसपैठ करते हुए अंग्रेजों ने उनसे कर वसूलना
चाहा। इसके लिए उन्होंने आदिवासियों का उत्पीड़न शुरू कर दिया। सन् 1760 तक पूरे मेदिनीपुर जिले में अंग्रेजों का कब्जा हो गया। इसके खिलाफ आदिवासियों ने पारंपरिक हथियारों से
लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपने पूरे क्षेत्र को उजाड़ दिया, ताकि उसका लाभ अंग्रेजों को न मिले।

आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इनके इलाके में सैन्य छावनी बना ली और क्रूर दमन शुरू कर दिया। उन्होने आदिवासी पुरुषों को अपना निशाना बनाया। इसलिए आदिवासी पुरुषों को
जंगल और पहाड़ियों में छिपना पड़ा। आदिवासी औरतें रात के अंधेरे में अंग्रेजी सेना को चकमा देकर पुरुषों को खाना और सान चढ़ाए हथियार पहुंचा आती थीं। साथ ही महत्वपूर्ण सूचनाएं
भी। लेकिन इस आवाजाही में कई आदिवासी औरतें पकड़ी भी गईं और क्रूर यातना का शिकार भी हुईं, लेकिन उन्होंने पहाड़ों में छिपे छापामार लड़ाकों के खिलाफ मुंह नहीं खोला।

सिनगी दई, चंपू दई और कइली दई रोहतासगढ़ की राजकुमारी थीं। कइली दई सेनापति की बेटी थी। तीनों उरांव जनजाति की थीं। 14वीं शताब्दी में अफगान तुर्कों के विरुद्ध तीनों ने अपने
समुदाय की महिलाओं को एकजुट किया, सिर पर पगड़ी बांधकर पुरुषों का भेष धर हाथ में तलवार लेकर घोड़े पर सवार होकर एक ही रात में तीन बार उनकी सेना को सोन नदी के पार खदेड़ आईं थीं। तीन
बार हराने की याद में उरांव औरतें ‘जनी शिकार’ नामक उत्सव मनाती हैं।

सन् 1827-32 के बीच में छोटानागपुर में अंग्रेजों के खिलाफ कोल विद्रोह हुआ। यह सिंहभूम, पलामू, हजारीबाग, मानभूम आदि क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैला था। इस विद्रोह के नाम से यह
अर्थ नहीं है कि केवल कोल समुदाय ही इस विद्रोह में शामिल था। इन क्षेत्रों के मुंडा, उरांव, हो तथा महली समुदाय भी इस विद्रोह के हिस्सा थे। इसके सबसे प्रसिद्ध अगुआ बुधु भगत थे।
उनकी दो बेटियां रूनिया-झुनिया भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ीं। बुधु ने गांव-गांव घूमकर लोगों को संगठित करना शुरू किया। जहां-जहां भी वे जाते, उनकी दोनों बेटियां भी उनके साथ
जातीं। उन्होंने अपने को युद्धविद्या में पारंगत किया। यह विद्रोह अंग्रजों के खिलाफ भूमि संबंधी असंतोष एवं परंपरागत व्यवस्था से छेड़छाड़ के कारण हुआ। यह विद्रोह अंग्रेजों
के साथ-साथ दिकुओं यानि बाहरियों या गैर-आदिवासियों के खिलाफ भी था। ये बाहरी अंग्रेजों के दलाल बनकर इनके गांवों में वसूली के लिए आते थे और लोगों पर अत्याचार करने के साथ-साथ
आदिवासी औरतों का यौन शोषण भी करते थे। यह आदिवासियों के लिए अपमान का बड़ा कारण बना। इसी कारण इस विद्रोह में आदिवासी औरतें पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी और गिरफ्तारी
के बाद जेल भी गईं। इस विद्रोह में रूनिया-झुनिया भी शहीद हुईं। इस विद्रोह के परिणाम स्वरूप 1833 में छोटानागपुर क्षेत्र को आंशिक स्वायत्तता प्रदान कर आदिवासियों के परंपरागत
मानकी-मुंडा शासन व्यवस्था को पुनः बहाल किया गया।


वहीं, सन् 1827-33 के बीच प्रसिद्ध खासी आदिवासियों का विद्रोह हुआ। खासी समुदाय तो वैसे भी अपने समाज में आज भी काफी हद तक मातृप्रधानता को बचाये रखने के लिए जाना जाता है।
मातृप्रधान समाज का अध्ययन करने वाले नृवंशशास्त्री खासी समुदाय के गांवों की यात्रा जरूर करते हैं। यह बंगाल के पूरब में जयंतिया पहाड़ियों से पश्चिम में गारो पहाड़ियों के बीच
स्थित है। खासी समाज के मुखिया ने अंग्रेजी सेना के आवागमन के लिए बनाए जा रहे सड़क मार्ग योजना का विरोध किया और उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसमें स्वाभाविक तौर पर महिलाओं की
बड़ी भागीदारी हुई।

सन् 1822, सन् 1825-26 व सन् 1839-41 के बीच चलने वाले रामोशी विद्रोह में महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में रहने वाले रामोशी जनजाति ने अकाल और भूख से तंग आकर सतारा के आसपास का क्षेत्र लूट लिया
और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। आंध्र प्रदेश में रंपा विद्रोह (1822-24) अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में गुरिल्ला युद्ध पद्धति से लड़ा गया। मणिपुर और नागालैंड में
आदिवासियों के अंग्रेजों के खिलाफ कई विद्रोह हुए। महिलाएं इन सभी आंदोलनों का आवश्यक हिस्सा रहीं। वे इन आंदोलनों में कहीं बराबर की तो कहीं सहायक शक्तियां रहीं।

अंग्रेजों के खिलाफ 1855 में हुई संथाल ‘हूल क्रांति’ इतिहास में काफी प्रसिद्ध है, जिसके नेता सिदो-कानू थे। झारखंड के हजारीबाग और गिरिडीह के बीच स्थित गांव भोगनाडीह इसका
केंद्र था। सिदो-कानू का परिवार यहीं का रहने वाला था। उनके परिवार के चार भाई सिदो, कानू, चांद, भैरव और दो बहने फूलो व झानू सभी ने हूल का बहादुरी के साथ नेतृत्व किया। यह आंदोलन
स्थानीय महाजनों-साहूकारों और उनके लठैतों के खिलाफ शुरू हुआ। लेकिन उन्हें बचाने और समर्थन देने ईस्ट इंडिया कंपनी आ गई, इसलिए यह हूल अंग्रेजी राज के खिलाफ संथाल क्षेत्र में
एक बड़े आंदोलन में बदल गया। सिदो-कानू की बहनें फुलो और झानू ने आंदोलन के लिए महिलाओं को संगठित किया और विद्रोह को एक अनुशासित व्यवस्थित लड़ाई में बदल दिया। उन्होंने महिलाओं
की छोटी-छोटी गुप्तचर समितियां बनाईं, प्राप्त सूचनाओं को क्रांतिकारियों तक पहुंचाने की टीमें बनाईं और तरीके ईजाद किये। अपनी ही अगुआई में व्यवस्थित योजना बनाकर इन्होंने
सुबह-सुबह अंग्रेजी कैंप पर हमला कर अंग्रेजी सेना के 21 लोगों को मार गिराया। इनकी बहादुरी के कारण बीरभूम जिला संथालों के कब्जे में आ गया। कई जगहों का शासन फुलो-झानों ने
संभाला। अंग्रेजों को इस विद्रोह का दमन करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। आखिर में फुलो और झानो भी पकड़ी गईं और इन्हें आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई।

संथाली भाषा में आज भी गीतों में उनकी बहादुरी और फांसी पर लटकाये जाने के किस्से गाए जाते हैं। जो आदिवासी समुदाय अपनी बहादुरी को मौखिक परंपरा में कायम रख इतिहास अपने बच्चों
का पढ़ाता है। इससे उनका जुझारूपन हमेशा बना रहता है। यह विद्रोह आदिवासी इतिहास में ही नहीं, भारतीय क्रांतिकारी इतिहास की एक बड़ी घटना है। लेकिन आज सरकार खुद आदिवासियों पर
क्रूर दमन कर रही है और सिदो-कानू, फूलो-झानू से प्रेरित प्रतिरोध आंदोलनों का सामना कर रही है। इसलिए वह ऐसे नायक-नायिकाओं को याद किये जाने से बचती है। जनता ने ही इन्हें ज़िंदा
रखा हुआ है।

अंग्रेजी राज के ही खिलाफ 1894-1900 के बीच बिरसा मुंडा की अगुआई में हुआ मुंडा विद्रोह ‘उलगुलान’ भी इतिहास में प्रसिद्ध है। यह आंदोलन आज भी आदिवासियों ही नहीं, देश के अन्य समुदाय
के आंदोलनकारियों को प्रेरणा दे रहा है। प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी ने तो इस पर ’ ‘जंगल के दावेदार’ उपन्यास ही लिख दिया है। सीधे-सीधे अंग्रेजी राज के खिलाफ उसे हिला
देने वाले इस आंदोलन के नेतृत्वकारी की भूमिका में केवल बिरसा मुंडा का नाम ही प्रसिद्ध है, लेकिन इस आंदोलन में बिरसा जिसके ऊपर सबसे ज्यादा यकीन करते थे, वह उनके साथ मजबूती से
लड़ने वाली योद्धा साली थीं। साली के अलावा माकी, थींगी, नेगी, लिंबू और चंदी इस उलगुलान की मुख्य योद्धा रही हैं। इन्होंने महिलाओं को संगठित किया और अंग्रेजी राज के खिलाफ
उलगुलान में पुरुषों के बराबर की साझेदार बनीं। माकी मुंडा गया मुंडा की पत्नी थीं। वह भाला-कुल्हाड़ी चलाने में माहिर थीं। एक बार जब गया मुंडा अंग्रेजी सिपाहियों से घिर गये थे,
तो उन्होंने एक अंग्रेज अफसर पर कुल्हाड़ी से वार किया। लेकिन वे पकड़ लिये गये और उन्हें दो साल की सजा हुई।

जब कोई भी आदिवासी आंदोलन अपने चरम पर नहीं था, तब भी आदिवासी महिलाएं पुरुषों के साथ आंदोलन की तैयारी में शामिल रहीं। ऐसी कुछ महिलाओं का जिक्र भी जरूरी है। छोटानागपुर में 1850 से
1880 तक अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वालों में तेलंगा खड़िया और उनकी पत्नी रत्नी खड़िया भी थीं। रत्नी खड़िया हर दिन तीर-तलवार चलाने का अभ्यास करती थीं। उन्होंने गांव-गांव
घूमकर लोगों को विद्रोह के लिए तैयार किया और विद्रोह को मजबूती दी।


गुरूबड़ी जनी उड़ीसा की रहने वाली थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ औरतों को संगठित करने के लिए भाषण देना सीखा और अंग्रेजों से लड़ने के लिए मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली। इनकी
बहादुरी के किस्से काफी विख्यात हैं। एक बार जब अंग्रेजी पुलिस ने इनके घर को अचानक घेर लिया, तो वे लपककर अपने घर के ऊंचे पेड़ पर चढ़कर छिप गईं, अंग्रेज इन्हें खोज ही नहीं सके।
इससे बौखलाए अंग्रेजों ने जब बाद में इन्हें गिरफ्तार किया, तब इन्हें बहुत यातना दी। उन्हें सड़कों पर घसीटा, अर्द्धनग्न अवस्था में चोटिल शरीर के साथ गांवों में घुमाया, फिर भी
उन्होंने अपने पति के बारे में कुछ भी नहीं बताया।

ऐसी ही एक आदिवासी महिला थीं, मुंगारी उरांव, जो कि इस समुदाय से आसाम की पहली शहीद थीं। वह 1930 का समय था, जब वे एक अंग्रेज अफसर के यहां घरेलू नौकर थीं। दरअसल वह आदिवासियों द्वारा
नियुक्त जासूस थीं, जो वहां से प्राप्त सूचनाओं को विद्रोहियों तक पहुंचाया करती थीं। लेकिन एक दिन यह राज खुल गया और अंग्रेज मालिक ने इनकी हत्या कर दी।

बस्तर के आदिवासियों के लिए भूमकाल विद्रोह का काफी महत्व है, जो 10 फरवरी, 1910 को हुआ। कोया आदिवासियों का यह विद्रोह अंग्रेजी राज के खिलाफ था। इसके नेता गुंडाधुर से अंग्रेज इतना
डरते थे कि कुछ समय के लिए उन्हें गुफाओं और पहाड़ियों में छिपकर रहना पड़ा। इस आंदोलन में लाल मिर्च, आम की टहनियां और तीर-धनुष क्रांतिकारियों की संदेशवाहक संकेत बनीं। महिलाओं
ने भूमकाल विद्रोह में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। लड़ने से लेकर पुरुषों को सुरक्षा, भोजन और जानकारियां देने का काम महिलाओं ने ही किया। कोया आदिवासी आज भी इसकी याद में हर
साल भूमकाल दिवस मनाते हैं।


यह उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों के जाने के आसपास और उसके बाद भी आदिवासियों ने अन्याय के खिलाफ लड़ाई नहीं छोड़ी। भगत सिंह ने कहा थादृ “गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों के आने
से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।” इसे अच्छे तरीके से मुख्यधारा के लोगों ने नहीं, बल्कि आदिवासियों ने ही समझा। सामंती और नए काले अंग्रेजों के खिलाफ वे लगातार लड़ते रहे, और आज भी वे लड़ते
जा रहे हैं।

सन् 1945-46 के समय का वर्ली विद्रोह एक ऐसा आदिवासी विद्रोह है, जिसमें महिलाओं की भूमिका काफी बड़ी थी। यह स्थान महाराष्ट्र के ठाणे के पास स्थित है। गोदावरी पारूलेकर इस आंदोलन में
महिलाओं की अगुआ थीं। उन्हें लोग प्यार से ‘गोदुताई’ यानि बड़ी बहन कहते थे। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में हुआ यह विद्रोह मूलतः जमींदारों के खिलाफ था। इस आदिवासी इलाके में
जमींदारों का शोषण काफी क्रूर था। मौसम की पहली बरसात होने पर आदिवासियों को अपने खेत पर नहीं, बल्कि पहले जमींदार के खेत पर काम करना पड़ता था। जमींदार जब चाहे तब किसी आदिवासी
औरत को अपने घर बुलाकर यौन शोषण करता था। इसके खिलाफ आदिवासी महिलाओं में तीखा आक्रोश था। कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें संगठित किया। उसके बाद उनके जुझारू संघर्षों ने जमींदार
ही नहीं, जमींदारी प्रथा की ही नींव हिला दी थी। यह आंदोलन आदिवासी महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका के कारण भी जाना जाता है।

अंग्रेजों के जाने के बाद भारत की सामंती व्यवस्था के खिलाफ 1967 में हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन में आदिवासी महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की और शहादतें दीं। इसके बाद तो यह आंदोलन देश
भर में फैल गया। इस आंदोलन के 50 साल पूरे होने पर अखबारों में एक आदिवासी जीवित महिला शांति मुंडा के बारे में खास स्टोरी प्रकाशित हुई थी। शांति मुंडा उस नक्सलवादी दल का हिस्सा
थीं, जिनकी अगुवाई में जमींदारों से बंटाई का हिस्सा मांगने लोग निकले थे। भूमिहीन किसानों के इस दल की एक महिला पर सोनम वांगदी नामक पुलिसवाले ने हमला किया, जिसे वे बर्दाश्त
नहीं कर सकीं और उन्होने उसके ऊपर तीर से हमला कर दिया। इस हमले में सोनम वांगदी की मौत हो गई। यह 24 मई, 1967 का दिन था। शांति मुंडा उस वक्त 20 साल की थीं। अगले दिन इसका बदला लेने के लिए
भारतीय सेना ने गांव के 10 भूमिहीन किसानों को मार डाला। लेकिन यह आंदोलन इसके बाद पूरे देश में फैल गया।

श्रीकाकुलम आंदोलन आदिवासियों का ऐसा बड़ा, ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण आंदोलन था, जिसमें महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका थी। भारत के क्रांतिकारी आंदोलन में 1968 के इस आंदोलन का विशेष
महत्व है। श्रीकाकुलम आदिवासी आबादी वाला क्षेत्र है। यहां के मुख्य आदिवासी थे, सवारा, जतापु, मुखदोरा, कोंडादोरा और कड़बा। इसमें सवारा और जतापु आदिवासी कुल आबादी का 70 प्रतिशत
हैं, ये दोनों जातियां इस विद्रोह का केंद्र थे। ये ‘पोदू’ यानि घुमंतू खेती करते थे, जो सरकार के द्वारा गैर-कानूनी घोषित थी। उनके लिए यह घोषणा ही विचित्र थी। वे मानते थे कि जब
जंगल उनका है तो बाहर वाला उन्हें कैसे कहीं भी खेती करने से रोक सकता है? इसके अलावा मामूली कर्ज के बदले में बंधुआ बना लेने की प्रथा और इस प्रथा के नाम पर घर की औरतों का यौन शोषण
इस आंदोलन के कारण बने। जंगल में घुसने पर वन विभाग इन्हें परेशान करता था और गांवों मे जमींदार।

कम्युनिस्ट पार्टी ने आदिवासियों को 1958 से संगठित करना शुरू कर दिया था। पुरूषों में शराब की लत के कारण आदिवासी महिलाएं तेजी से पार्टी के संगठन ‘गिरिजन संघम’ में संगठित हुई और
शराब के खिलाफ उन्होंने महत्वपूर्ण आंदोलन चलाया। उन्होंने भट्ठियां तोड़ी और जमींदारों के दारू ठेकों को बंद करा दिया। पंचादि निर्मला इस आंदोलन की महत्वपूर्ण नेता थीं।
आंदोलन को बढ़ता देखकर 1967 में राज्य और केंद्र दोनों सरकारों की ओर से बड़ा दमन अभियान चलाया गया। एक घटना का जिक्र इस आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को समझने के लिए काफी होगा।


31 अक्टूबर, 1967 को गुम्मा गांव की 4000 आदिवासी औरतें लाल साड़ी पहनकर आंदोलन के गीत गाते हुए मोदेखल में आयोजित गिरिजन सम्मेलन में भाग लेने जा रहीं थीं। रास्ते में लेविड़ी गांव में
जमींदार के गुंडों ने उनके ऊपर हमला किया। उनकी लाल साड़ियां फाड़ दी गयीं और बदसुलूकी की गई। औरतें ऐसी घटनाओं के लिए तैयार रहती थीं। उन्होंने पलटवार करते हुए गुंडों को अनाज के
मूसलों और डंडों से पीटना शुरू कर दिया। अपने पास रखा मिर्च पाउडर उनकी आंखों में डाल दिया। इस बीच कुछ महिलाओं ने भागकर इसकी सूचना मोदेखल सम्मेलन में दे दी और वहां से सैकड़ों की
संख्या में लोग लेविड़ी आ गये। अपने को फंसता देख एक जमींदार ने आदिवासियों पर गोली चला दी और दो आदिवासियों की मृत्यु हो गयी। पुलिस ने जमींदारों के खिलाफ काफी देर से कम
साक्ष्यों के साथ कार्यवाही की और वह अदालत से निर्दाेष बरी हो गया। इससे गुस्साये आदिवासियों का आंदोलन का रूप सशस्त्र हो गया। महिलाओं ने इस सशस्त्र रूप में भी अपने को संगठित
रखा। उन्होंने पुरुषों को गिरफ्तारी से बचाया, खुद जेल गईं और शहीद भी हुईं। इनमें 15 आदिवासी महिलाएं शामिल थीं, बिद्दिका सुक्कू, निम्मका सुक्कुल, कदराका पूर्णा, सवारा सेलजा,
मनदांगी सयम्मा, सबरा सुक्कू, सवारा सुक्कू, जगाती बिरी, बिद्दिका चंद्राम्मा, आरिका जयम्मा, आरिका गाया, बिद्दिका सुरू, कोरांगी, सुंदरी, पत्ती सुक्कू। इस आंदोलन में शहीद
आदिवासी महिलाओं की संख्या देखकर आंदोलन में उनकी भागीदारी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

आज़ाद भारत में आदिवासी औरतों ने इस सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ न सिर्फ बड़े आंदोलन किये, बल्कि उनमें नेतृत्वकारी भूमिका में भी रहीं। मसलन, सरदार सरोवर बांध के खिलाफ चले
आंदोलन में डूबने वाले गांवों की आदिवासी औरतों ने मेधा पाटकर के नेतृत्व मे जुझारू आंदोलन चलाया। यह कहना ज्यादा ठीक है कि इस आंदोलन में आदिवासी औरतों की मौजूदगी ने इस आंदोलन
को मजबूत और जुझारू बनाया। अगर यह जीता नहीं जा सका तो इसकी वजहें दूसरी थीं।

केरल के प्लाचीमडा में कोकोकोला प्लांट के खिलाफ 2005 में जुझारू आंदोलन हुआ, जिसका नेतृत्व मायलम्मा नाम की आदिवासी महिला ने किया। यह आंदोलन महिलाओं की मजबूत उपस्थिति के कारण
जुझारूपन के साथ लड़ा और जीता गया। पारंपरिक तीर-धनुष और अन्य हथियारों के साथ जंगलों से लड़ती आदिवासी महिलाओं की तस्वीरें उन दिनों हर पत्रिका के कवर पर छाई रहती थीं।। मायलम्मा
पर बहुत सारे मुकदमें लाद दिये गये और उन्हें काफी समय तक भूमिगत रहना पड़ा।


उड़ीसा के कलिंगनगर में टाटा स्टील प्लांट के खिलाफ चले आंदोलन में भी महिलाओं की बड़ी भागीदारी हुई। दमन के पहले भी और दमन के बाद भी। इस आंदोलन की एक अगुआ नेता आदिवासी महिला सिनी
सोय थी, जिन्हें लंबे समय तक भूमिगत रहना पड़ा। इस आंदोलन के जुझारूपन से घबराकर ही प्लांट के प्रहरियों ने 2 जनवरी, 2006 को धरना दे रहे आंदोलनकारियों पर गोली चलवा दी, जिसमें 14
आदिवासी शहीद हुए। बाद में कई लोगों के कटे हुए हाथ भी मिले, जिसकी पहचान के लिए यहां के लोग अभी भी लड़ रहे हैं।

वहीं उड़ीसा में ही जगतसिंहपुर में कोरियाई कंपनी पोस्को के खिलाफ चले जुझारू आंदोलन में भी आदिवासी महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी के कारण यह आंदोलन इतना जुझारू बन गया कि
पास्को कंपनी को यहां से भागना पड़ा। इससे अपमानित होकर उड़ीसा की सरकार आज भी स्थानीय लोगों से बदला ले रही है। उनकी जमीनें हथियाने के लिए गांवों पर बर्बर दमन कर रही है, पुलिस की
गोली से घायल होने वालों और गिरफ्तार होने वालों में आदिवासी महिलाएं पुरूषों से पीछे नहीं हैं।

ऐसे ही बंगाल में चले खेती के अधिग्रहण के खिलाफ होने वाले लालगढ़, सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों की भी अगुआ पंक्ति में आदिवासी औरतें थीं, जिसकी यादें अभी भी एकदम ताजी हैं।
आदिवासी औरतें बिना शोरगुल के अन्याय के खिलाफ लड़ती रहती हैं। उनकी लड़ाई लोगों ने बस जानी नहीं। यह रूकी कभी नहीं है। बस्तर के ‘क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन’ के बारे में
दुनिया को तब पता चला जब प्रख्यात लेखिका अरूंधति रॉय ने 2010 में बस्तर माओवादी क्षेत्र की यात्रा के बाद ‘आउटलुक’ पत्रिका में एक लेख लिखा और बताया कि नब्बे हजार की सदस्यता वाला
यह संभवतः भारत का सबसे बड़ा महिला संगठन है। उन्होंने लिखा कि जंगल को कॉरपोरेट लूट और सरकार की घुसपैठ से लड़ने के साथ ये संगठन आदिवासी समाज के अंदर व्याप्त पितृसत्ता से लड़ने
का काम करता है।

झारखंड के नारी मुक्ति संघ के बारे में लोगों ने तब जाना, जब सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। इस संगठन के सदस्यों का अधिकांश हिस्सा आदिवासी व दलित महिलाओं का था, जो गांवों में
सामंती शोषण से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध था।

बस्तर इन दिनों आदिवासी महिलाओं के आंदोलन का केंद्र बना हुआ है। सोनी सोरी, मरकाम हिड़मे, कवासी हिड़मे को आज भला कौन नहीं जानता, क्योंकि ये तीनों ही क्रूर पुलिस दमन का शिकार हुई
हैं और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इन्होंने जंगल को बचाने के लिए आंदोलन किया। पुलिस हिरासत में सोनी सोरी के यौनांगों में पत्थर भरे गए, उनके मुंह पर ज्वलनशील रसायन मला गया, कई
मुकदमे दर्ज किये गये, पीछा किया गया, घर जाने से बच्चों से मिलने से रोका गया। लेकिन इन सबके बावजूद वे सरकार के अन्याय के खिलाफ एक बुलंद आवाज हैं। उनकी लड़ाई जंगल बचाने से आगे
बढ़कर देश बचाने की लड़ाई की आवाज बन चुकी है।

बहरहाल, आदिवासियों के आंदोलनों में महिलाओं की उपस्थिति के ये चंद उदाहरण मात्र है। ऐसे अनेक आंदोलन उनकी मजबूत उपस्थिति और जुझारूपन का नमूना है। यह कहना अधिक ठीक है कि ऐसा
कोई आदिवासी आंदोलन नहीं है, जिसमें महिलाओं की अगुवा और जुझारू भूमिका न हो।

(यह लंबा आलेख सोशल मीडिया के फेसबुक मंच से लिया गया है। यह साम्यवाद के चरमपंथ से प्रभावित लगता है, बावजूद इसके यह पठनीय है। अन्याय के खिलाफ संघर्ष में चाहे जिस विचारधारा का
सहयोग मिले। उसका सम्मान किया जाना चाहिए। शासन और सत्ता का अपना चरित्र होता है लेकिन संघर्ष का अपना स्वरूप होता है। चूंकि आलेख बढ़िया है, इसलिए मैं इसे अपने मंच से भी
सार्वजनिक कर रहा हूं। हालांकि कि मैं साम्यवादी चरमपंथ की विचारधारा से सहमत नहीं हूं लेकिन एक संवेदनशील व्यक्ति होने के कारण उनके संघर्ष को खारिज नहीं कर सकता।)





















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8.बेजुबान पशु पक्षियों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी , दिव्यांशी अरोड़ा VIEW ,

9.अडाणी पोर्ट्स को नहीं लौटानी होगी जमीन, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक VIEW ,

10.ट्रेन में कन्फर्म तत्काल टिकट के लिए नहीं होंगे परेशान, इस मास्टर ट्रिक से खत्म हो जाएंगे सारे झमेले VIEW ,

11.Lok Sabha Elections Phase-6: दिल्ली समेत इन राज्यों में होगी वोटिंग, जानें तारीख, प्रमुख उम्मीदवार; यहां मिलेगी पूरी डिटेल VIEW ,

12.*दिल्ली* कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने निमंत्रण स्वीकार किया राहुल गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर किया पोस्ट 2 पूर्व जज, एक वरिष्ठ पत्रकार ने किया है आमंत्रित PM और राहुल गांधी को बहस के लिए आमंत्रि VIEW ,

13.अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत VIEW ,

14.उत्तर पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी ने किया नामांकन VIEW ,

15.सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में इंडिया एकजुट, 31 को रामलीला मैदान में प्रदर्शन का ऐलान VIEW ,

16.दिल्ली में आप दफ्तर जाने वाले रास्ते को पुलिस ने बैरिकेड लगाकर किए बंद VIEW ,

17.CAA का नोटिफिकेशन जारी हुआ,* VIEW ,

18.*_देश में जल्द लागू हो सकता है CAA, चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले नोटिफिकेशन होगा जारी_* नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम का आचार संहिता की घोषणा से पहले लागू किया जाना तय है। समाचार एजेंसी एए VIEW ,

19.लालकृष्ण आडवाणी को मिलेगा भारत रत्न, पीएम मोदी ने किया ऐलान VIEW ,

20.सन १९७२ से दुसाध जाति के उत्थान हेतु, अखिल भारतीय दुसाध उत्थान परिषद (पंजीकृत)" के माध्यम से किए गये प्रयास और उसका प्रतिफल। VIEW ,

1.राहुल गांधी को मिल गई दुल्हन, इस तिथि तक गांधी परिवार में बज सकती है शहनाई, जानें किस रीति रिवाज के अनुसार संपादित होंगे विवाह। VIEW ,

2. मोदी सरकार का बड़ा फ़ैसला- VIEW ,

3.मनीष सिसोदिया रिहा हुए , 17 महीने तक रहे जेल में VIEW ,

4.वामपंथ/ तुर्क, मुगल और फिरंगी हुकूमरानों के दमन के खिलाफ आदिवासी महिलाओं की संघर्ष कथा VIEW ,

5.बेजुबान पशु पक्षियों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी , दिव्यांशी अरोड़ा VIEW ,

6.सीएम केजरीवाल को कोर्ट से जमानत मिली VIEW ,

7.दिल्ली के नरेला में फैक्ट्री में लगी भीषण आग, 3 मजदूरों की मौत, 6 गंभीर रूप से झुलसे VIEW ,

8.ट्रेन में कन्फर्म तत्काल टिकट के लिए नहीं होंगे परेशान, इस मास्टर ट्रिक से खत्म हो जाएंगे सारे झमेले VIEW ,

9.Lok Sabha Elections Phase-6: दिल्ली समेत इन राज्यों में होगी वोटिंग, जानें तारीख, प्रमुख उम्मीदवार; यहां मिलेगी पूरी डिटेल VIEW ,

10.*दिल्ली* कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने निमंत्रण स्वीकार किया राहुल गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर किया पोस्ट 2 पूर्व जज, एक वरिष्ठ पत्रकार ने किया है आमंत्रित PM और राहुल गांधी को बहस के लिए आमंत्रि VIEW ,

11.अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत VIEW ,

12.उत्तर पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी ने किया नामांकन VIEW ,

13.जलवायु परिवर्तन/झारखंड के 12 जिलों में बढ़ेगा तापमान, हीट वेव को लेकर मौसम विभाग का अलर्ट VIEW ,

14.सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में इंडिया एकजुट, 31 को रामलीला मैदान में प्रदर्शन का ऐलान VIEW ,

15.दिल्ली में आप दफ्तर जाने वाले रास्ते को पुलिस ने बैरिकेड लगाकर किए बंद VIEW ,

16.CAA का नोटिफिकेशन जारी हुआ,* VIEW ,

17.*_देश में जल्द लागू हो सकता है CAA, चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले नोटिफिकेशन होगा जारी_* नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम का आचार संहिता की घोषणा से पहले लागू किया जाना तय है। समाचार एजेंसी एए VIEW ,

18.लालकृष्ण आडवाणी को मिलेगा भारत रत्न, पीएम मोदी ने किया ऐलान VIEW ,

19.सन १९७२ से दुसाध जाति के उत्थान हेतु, अखिल भारतीय दुसाध उत्थान परिषद (पंजीकृत)" के माध्यम से किए गये प्रयास और उसका प्रतिफल। VIEW ,

20.Bihar Political Crisis 2024:- दो डिप्टी CM, स्पीकर का पद............ नीतीश और BJP के बीच तय हो गया पावर शेयरिंग का फॉर्मूला! VIEW ,

1.गोरखधाम ट्रेन कल शाम शकूरबस्ती से गोरखपुर के लिए रवाना हुई ट्रेन में बढ़ती भीड़ के वजह से स्लीपर रिजर्वेशन वाले लोगों को बैठने में दिक्कत हुई प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि कृपया नागलोई शुक्र VIEW ,

2.Ucp news के सभी टीम की तरफ से आप सभी देशवासियों को क्षेत्र वासियों को दीपावली की बहुत सारी शुभकामनाएं VIEW ,

3.आज धनतेरस के दिन निठारी किराड़ी रोड पर पब्लिक का VIEW ,

4.विजयदशमी के दिन मेले का आयोजन था सेक्टर 21 पेट्रोल पंप के सामने सभी देशवासियों को बहुत सारा विजयदशमी का शुभक VIEW ,

5.प्रताप विहार विजयदशमी के दिन बच्चों का प्रोग्राम रखा गया था VIEW ,

6.आज नवरात्रि के अष्टमी के दिन नवदुर्गा मंदिर के पास में भfक्तों द्वारा कंजक पूजन किया गया। यहां पर लंबे लाइन लगी हुई थी श्रृद्धाजंलियों ने प्रसाद को वितरित किया गया। VIEW ,

7.आप सभी देशवासियों को नवरात्रि का शुभकामनाएं VIEW ,

8.बेरोजगारी से परेशान, नौकरी वापसी की मांग VIEW ,

9.दिल्ली उधोगनगर j ब्लॉक में में आग लगा VIEW ,

10.दिल्ली में भी गणेश विसर्जन धूमधाम से मनाया गया VIEW ,

11.तीज व्रत का बहुत सारा सुभकामना VIEW ,

12.पहले लाइब्रेरी का उद्घाटन रविंद्र भारद्वाज के नेतृत्व में हुआ VIEW ,

13.Chandrayan Chandrama se jo photo bheja VIEW ,

14.G 20 को लेकर नोएडा पुलिस हुई अलर्ट VIEW ,

15.G20 Sammelan VIEW ,

16.दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में लगी आग छात्र छात्राओं की जान पर संकट VIEW ,

17.एक और हत्या | दिल्ली में बेटियां है असुराशित VIEW ,

18.NGO के मालिक ने अपने एक केयर टेकर को 400000000₹ का मान हानि केस का दावा किया VIEW ,

19.NGO को किसी भी हाल में टेंडर नहीं मिलना चाहिए : Istikar Ansari VIEW ,

20.गवर्नमेंट दिल्ली सरकार ध्यान दे , काफी आवाज उठा रहा हूँ लेकिन कुछ नहीं हो पाया है VIEW ,

1. किराड़ी विधान सभा दिल्ली में आज बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा धरना VIEW ,

2.गोरखधाम ट्रेन कल शाम शकूरबस्ती से गोरखपुर के लिए रवाना हुई ट्रेन में बढ़ती भीड़ के वजह से स्लीपर रिजर्वेशन वाले लोगों को बैठने में दिक्कत हुई प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि कृपया नागलोई शुक्र VIEW ,

3.Ucp news के सभी टीम की तरफ से आप सभी देशवासियों को क्षेत्र वासियों को दीपावली की बहुत सारी शुभकामनाएं VIEW ,

4.आज धनतेरस के दिन निठारी किराड़ी रोड पर पब्लिक का VIEW ,

5.विजयदशमी के दिन मेले का आयोजन था सेक्टर 21 पेट्रोल पंप के सामने सभी देशवासियों को बहुत सारा विजयदशमी का शुभक VIEW ,

6.प्रताप विहार विजयदशमी के दिन बच्चों का प्रोग्राम रखा गया था VIEW ,

7.आज नवरात्रि के अष्टमी के दिन नवदुर्गा मंदिर के पास में भfक्तों द्वारा कंजक पूजन किया गया। यहां पर लंबे लाइन लगी हुई थी श्रृद्धाजंलियों ने प्रसाद को वितरित किया गया। VIEW ,

8.दिल्ली प्रताप विहार पार्ट 2 जीवन VIEW ,

9.आप सभी देशवासियों को नवरात्रि का शुभकामनाएं VIEW ,

10.बेरोजगारी से परेशान, नौकरी वापसी की मांग VIEW ,

11.दिल्ली उधोगनगर j ब्लॉक में में आग लगा VIEW ,

12.IPL 2024: ये हैं आरसीबी के टॉप 5 करोड़पति खिलाड़ी, सबसे ज्यादा होती है कमाई VIEW ,

13.दिल्ली में भी गणेश विसर्जन धूमधाम से मनाया गया VIEW ,

14.तीज व्रत का बहुत सारा सुभकामना VIEW ,

15.पहले लाइब्रेरी का उद्घाटन रविंद्र भारद्वाज के नेतृत्व में हुआ VIEW ,

16.Chandrayan Chandrama se jo photo bheja VIEW ,

17.G 20 को लेकर नोएडा पुलिस हुई अलर्ट VIEW ,

18.G20 Sammelan VIEW ,

19.दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में लगी आग छात्र छात्राओं की जान पर संकट VIEW ,

20.एक और हत्या | दिल्ली में बेटियां है असुराशित VIEW ,

1.मुझे मेरी नौकरी भी वापस दी जाए , Istikar Ansari VIEW (499578) ,

2.गवर्नमेंट दिल्ली सरकार ध्यान दे , काफी आवाज उठा रहा हूँ लेकिन कुछ नहीं हो पाया है VIEW (484895) ,

3.NGO को किसी भी हाल में टेंडर नहीं मिलना चाहिए : Istikar Ansari VIEW (253443) ,

4.दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में लगी आग छात्र छात्राओं की जान पर संकट VIEW (220500) ,

5.एक और हत्या | दिल्ली में बेटियां है असुराशित VIEW (219017) ,

6.साक्षी को साहिल ने उतारा मौत के घाट, 16 साल की लड़की पर चाकू से किया 40 वार, तमाशबीन रही भीड़ VIEW (216128) ,

7.NGO के मालिक ने अपने एक केयर टेकर को 400000000₹ का मान हानि केस का दावा किया VIEW (199829) ,

8.यूनिवर्स सिटीजन पार्टी, प्रेसिडेंट : Vinay Biradar ने बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर हमारे चैनल से बात की VIEW (155029) ,

9.जनार्दन सिंह सिग्रीवाल केंद्रीय रेल मंत्री जी से अपने क्षेत्र में कई रेलवे स्टेशन पर कई रेल गाड़ियों के रुकाव हेतु मिलें VIEW (122836) ,

10.1 Cr. Government JOBS for DELHI People VIEW (108411) ,

11.दिल्ली में भी त्यौहार धूमधाम से मनाई गई VIEW (85912) ,

12.Chandrayan Chandrama se jo photo bheja VIEW (75430) ,

13.G 20 को लेकर नोएडा पुलिस हुई अलर्ट VIEW (73258) ,

14.G20 Sammelan VIEW (72187) ,

15.पहले लाइब्रेरी का उद्घाटन रविंद्र भारद्वाज के नेतृत्व में हुआ VIEW (67853) ,

16.तीज व्रत का बहुत सारा सुभकामना VIEW (64990) ,

17.दिल्ली में भी गणेश विसर्जन धूमधाम से मनाया गया VIEW (54978) ,

18.England vs New Zealand Highlights, ICC World Cup 2023: Ravindra, Conway fire tons as New Zealand stun defending champions England by 9 wickets VIEW (31370) ,

19.दिल्ली विकल्प प्रशासन प्रशासन द्वारा प्रकाशित आशा प्रभात के उपन्यासों में 21वीं साड़ी की स्त्री प्रकाशित हो चुकी है VIEW (26786) ,

20.दिल्ली उधोगनगर j ब्लॉक में में आग लगा VIEW (24736) ,

1.मुझे मेरी नौकरी भी वापस दी जाए , Istikar Ansari VIEW (499578) ,

2.गवर्नमेंट दिल्ली सरकार ध्यान दे , काफी आवाज उठा रहा हूँ लेकिन कुछ नहीं हो पाया है VIEW (484895) ,

3.NGO को किसी भी हाल में टेंडर नहीं मिलना चाहिए : Istikar Ansari VIEW (253443) ,

4.दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में लगी आग छात्र छात्राओं की जान पर संकट VIEW (220500) ,

5.एक और हत्या | दिल्ली में बेटियां है असुराशित VIEW (219017) ,

6.साक्षी को साहिल ने उतारा मौत के घाट, 16 साल की लड़की पर चाकू से किया 40 वार, तमाशबीन रही भीड़ VIEW (216128) ,

7.NGO के मालिक ने अपने एक केयर टेकर को 400000000₹ का मान हानि केस का दावा किया VIEW (199829) ,

8.यूनिवर्स सिटीजन पार्टी, प्रेसिडेंट : Vinay Biradar ने बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर हमारे चैनल से बात की VIEW (155029) ,

9.जनार्दन सिंह सिग्रीवाल केंद्रीय रेल मंत्री जी से अपने क्षेत्र में कई रेलवे स्टेशन पर कई रेल गाड़ियों के रुकाव हेतु मिलें VIEW (122836) ,

10.1 Cr. Government JOBS for DELHI People VIEW (108411) ,

11.दिल्ली में भी त्यौहार धूमधाम से मनाई गई VIEW (85912) ,

12.Chandrayan Chandrama se jo photo bheja VIEW (75430) ,

13.G 20 को लेकर नोएडा पुलिस हुई अलर्ट VIEW (73258) ,

14.G20 Sammelan VIEW (72187) ,

15.पहले लाइब्रेरी का उद्घाटन रविंद्र भारद्वाज के नेतृत्व में हुआ VIEW (67853) ,

16.तीज व्रत का बहुत सारा सुभकामना VIEW (64990) ,

17.दिल्ली में भी गणेश विसर्जन धूमधाम से मनाया गया VIEW (54978) ,

18.Virat-Gambhir Fight Opinion: विराट कोहली- गौतम गंभीर विवाद में कौन है असली कसूरवार? VIEW (37012) ,

19.IPL 2024: ये हैं आरसीबी के टॉप 5 करोड़पति खिलाड़ी, सबसे ज्यादा होती है कमाई VIEW (36558) ,

20.Anjum Chopra Backs KL Rahul To Keep Stumps Ahead Of Ishan Kishan In ICC World Cup 2023 VIEW (34766) ,

        

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